🙏 🛕 श्री हनुमान चालीसा 🛕 🙏
दोहा :
- श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।
चौपाई :
- जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥१॥
- रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
- महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
- कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥४॥
- हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
कॉंधे मूँज जनेऊ साजै॥५॥
- शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥६॥
- विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥
- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
- भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥
- लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥११॥
- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥
- सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥
- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
- यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
- तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
- तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भये सब जग जाना॥१७॥
- जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥
- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥१९॥
- दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
- राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
- सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥
- आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥
- भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥
- नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
- संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥
- सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
- और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥२८॥
- चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
- साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे॥३०॥
- अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥३१॥
- राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
- तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
- अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥
- और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥३५॥
- संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
- जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७॥
- जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥३८॥
- जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥
- तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥४०॥
दोहा :
- पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
श्री हनुमान चालीसा का अर्थ
- श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
अर्थ:- मैं अपने श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी मुकुट को स्वच्छ करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला है।
- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।
अर्थ:- हे पवनपुत्र! मैं आपका उपासक हूँ, आप तो यह भी जानते हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शक्ति, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों और चिंताओं का अंत कर दो।
- जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥१॥
अर्थ:- हे हनुमान जी, हे कपीश आप ज्ञान व अनन्त गुणों के सागर हैं। आप तीनों लोकों को प्रकाशमान करते हो, आपकी जय हो
- रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
अर्थ:- आप राम के दूत (प्रतिनिधी) व असीम एवं अद्वितीय बल, शक्ति के भण्डार (धाम) हैं। आप अंजनिपुत्र व पवनपुत्र नाम से विख्यात हैं।
- महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
अर्थ:- हे महावीर आप अत्यन्त वीर, पराक्रमी हैं । आपके अंग वज्र के समान बलिष्ठ हैं। आप पाप बुद्धि को दूर करने वाले व सद्बुद्धि का साथ देते हैं।
- कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥४॥
अर्थ:- आपका रंग स्वर्ण के समान है, सुन्दर वेशभूषा धारण कर शोभामान होते हैं, आप कानों में कुण्डल धारण करते हैं आपके केश, घुंघराले व अति सुन्दर हैं।
- हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
कॉंधे मूँज जनेऊ साजै॥५॥
अर्थ:- आपके एक हाथ में वज्र (गदा) दूसरे में ध्वजा शोभा पाती है, आपके कन्धे पर यज्ञोपवीत शोभायमान रहता है
- शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥६॥
अर्थ:- आप शंकर के पुत्र हैं तथा केसरी जी को आनन्द देने वाले हैं। आपकी यश, प्रतिष्ठा महान है। सारा संसार आपकी पूजा करता है।
- विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
अर्थ:- आप सभी विद्याओं ( युद्ध, योग, संस्कृत) के पूर्ण अनुभवी हैं व राम जी के सभी कार्य सम्पन्न करने को व्याकुल रहते हैं।
- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥
अर्थ:- आप राम जी की कथा सुनने के रसिया हैं। आपके हृदय में राम, लक्ष्मण जी व सीता माता सदा वास करते हैं।
- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
अर्थ:- आप योग-बल से छोटा रूप बनाकर सीता जी के आगे प्रकट हुये व विशाल एवं भंयकर रूप धारण कर लंका को जला डाला।
- भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥
अर्थ:- राम-रावण युद्ध में आपने विशाल, भंयकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया, रामचन्द्र जी के अनेक कार्य सम्पन्न किये।
- लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥११॥
अर्थ:- आपने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया, प्रभु राम ने प्रसन्न हो भाई की भाँति आपको छाती से लगा लिया।
- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥
अर्थ:- प्रभु राम जी ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा हनुमान! "तुम भरत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो"
- सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥
अर्थ:- सहस्त्रों मुख तुम्हारा यशोगान कर रहे हैं, ये कह कर लक्ष्मीपति भगवान ने पुनः हनुमान जी को गले लगा लिया।
- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
अर्थ:- यह सारे ऋषि मुनि, देवी-देवता एवं ब्रह्मा जी, सरस्वती, नारद सभी आपके साथ हैं।
- यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
अर्थ:- यमराज, कुबेर जी और अन्य ज्ञानी जन सब ही आपका गुण गान करते हैं। बोलो पवनपुत्र हनुमान जी की जय।
- तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
अर्थ:- आपने सुग्रीवजी को श्री राम से मिलवाकर उन पर महान् उपकार किया, राम मिलन से ही उन्हें किष्किन्धा का राज्य प्राप्त हुआ।
- तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भये सब जग जाना॥१७॥
अर्थ:- आपका परामर्श मानकर विभीषण प्रभु राम की शरण में गये, जिसके कारण वे लंका के राजा बने, ये बात सारा संसार जानता है।
- जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥
अर्थ:- आपने बाल्यकाल में हजारों योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मधुर (मीठा) फल जान मुँह में रख लिया था।
- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥१९॥
अर्थ:- वह मुद्रिका जो समस्त कार्यों को पूर्ण कराने वाली तथा सब विघ्न बाधाओं को हरने वाली थी उसे मुंह में रख आपने विशाल सागर को पार किया, इसमें अचरज नहीं है।
- दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
अर्थ:- संसार में लोगों के जितने भी कठिन कार्य हैं वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।
- राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
अर्थ:- प्रभु रामके द्वार (बैकुण्ठ) के आप रखवाले हैं आपकी आज्ञा के बिना कोई भी उस धाम में प्रवेश नहीं कर सकता।
- सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥
अर्थ:- जो आपकी शरण में आता है वह सब सुखों को प्राप्त करता है और जब आप स्वयं उसके रक्षक हैं तो उसे फिर किस बात का डर है।
- आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥
अर्थ:- आपका तेज अत्यन्त प्रचण्ड है, उसे स्वयं आप ही सम्भाल सकते हैं। आपकी एक हुँकार से ही तीनों लोक कांप उठते हैं।
- भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥
अर्थ:- यदि किसी को भूत-पिशाच दिखायी देते हों तो हे महावीर जी आपका नाम लेने भर मात्र से वह तुरन्त भाग जाते हैं। (आपका नाम राम बाण) की भाँति है।
- नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
अर्थ:- आपके नाम का निरन्तर जाप करने से सब रोग व पीड़ायें (आदि भौतिक, आदि दैविक तथा आध्यात्मिक) ये तीनों ताप भी दूर हो जाते हैं।
- संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥
अर्थ:- जो व्यक्ति मन, वाणी व शरीर से हनुमान जी का स्मरण व पूजा करते हैं, हनुमान जी उनके सब संकट दूर कर देते हैं।
- सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
अर्थ:- तपस्वी राम सारे संसार के राजा (स्वामी) हैं। फिर भी हनुमान जी आपने उनके सारे कठिन कार्य सम्पन्न किये।
- और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥२८॥
अर्थ:- जो कोई अपनी सांसारिक इच्छा लेकर आता है, उसे तो आप पूरा करते ही हैं। पर साथ ही राम भक्ति का मार्ग दिखाते हैं जिसरे, मुनष्य जीवन का अमूल्य फल ( मोक्ष) प्राप्त करता है।
- चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
अर्थ:- आपका प्रभाव चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर तथा कलियुग) में फैला है वह प्रताप जगत को प्रकाशमान करने के लिये प्रसिद्ध है।
- साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे॥३०॥
अर्थ:- आप सज्जनों, प्रभु भक्तों की रक्षा करने वाले व दुष्टों का नाश करने वाले हैं। प्रभु राम को पुत्र के समान प्रिय हैं।
- अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥३१॥
अर्थ:- आपको माता सीता की ओर से आठ सिद्धियों और नौ निधियों का जो वरदान मिला है, उनकी शक्ति से आप किसी को भी सब प्रकार की सम्पत्ति दे सकते हैं।
- राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
अर्थ:- आपके पास राम भक्ति रूपी रसायन है, जो किसी को भी सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। आप रघुपति दास के रूप में लोगों को राम भक्त बनाते हैं।
- तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अर्थ:- आपके लिये किये गये सभी भजन श्री राम तक पहुंचते हैं। जिससे जन्म-जन्मान्तर के दुःख दूर हो जाते हैं।
- अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥
अर्थ:- आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अन्त समय श्री राम के धाम को प्राप्त करते हैं और यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे, तो भक्ति करेंगे व हरि भक्त कहलायेंगे।
- और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥३५॥
अर्थ:- राम भक्ति में (कृष्ण, विष्णु, शिव) सब एक हैं। हे हनुमान जी, जो भक्त सच्चे मन से आपकी सेवा करते हैं! उन्हें सब सुख प्राप्त होते हैं।
- संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
अर्थ:- महावीर जी की उपासना भक्ति से मनुष्य के सारे संकट, कष्ट, दुःख मिट जाते हैं। वह से जन्म-मरण (भव) की पीड़ा मुक्त हो जाता है।
- जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७॥
अर्थ:- हे हनुमान जी, हे गोस्वामी जी ( जिसने दसों इन्द्रियों को वश में किया हो) आपकी जय हो। गुरु की भांति मुझ पर कृपा करें।
- जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥३८॥
अर्थ:- जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का शत (निरन्तर ) पाठ करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो शाश्वत् आनन्द प्राप्त करता है।
- जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥
अर्थ:- जो व्यक्ति हनुमान चालीसा को पढ़ता है उसकी सब मनोकामनायें सफल होती हैं इस बात की साक्षी स्वयं भगवान शंकर ने दी है।
- तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥४०॥
अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि हे प्रभु आप राम के दास है और मैं आपका दास हूँ। अतः हे श्री हनुमान जी आप मेरे हृदय में विराजें।
- पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
अर्थ:- हे पवन पुत्र! संकटों, दुखों कष्टों को दूर करने वाले एवं परम कल्याण की साक्षात मूर्ति और आप जो देवताओं के राजा हैं । राम, लक्ष्मण, सीता जी के साथ मेरे हृदय में वास कीजिए।
श्री हनुमान चालीसा का पाठ कैसे करें?
हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए आप घी का दीपक जलाकर पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करके नित्य हनुमान चालीसा का पाठ सात या सौ बार कर सकते हैं। पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व आप हनुमान जी को एक लाल आसन बिछाकर उस पर आदर सहित पाठ सुनने के लिए बुला सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें आदर सहित पाठ समाप्ति के बाद हनुमान जी को विदा करना न भूलें।
नित्य चालीसा को सात बार पाठ करने से हनुमान जी की कृपा मिलती है। यदि आपकी बाधा बड़ी है तो आप इस पाठ को 100 बार नित्य करेंगे तो बाधा से मुक्ति मिल जाएगी।
यदि आप संसार से मुक्ति पाकर प्रभु शरण में जाना चाते हैं तो आप नित्य सौ बार पाठ आजीवन करें। ऐसा करेंगे तो प्रभु का साक्षात्कार होगा और मोक्ष प्राप्त होगा।
यदि कोई हनुमान जी का षोडशोपचार से पूजन करके । नित्य हनुमान चालीसा का सात या सौ बार पाठ करता है तो वह उनकी कृपा पाने का अधिकारी हो जाता है।
यदि कोई तनाव व इच्छा-मुक्त है और शान्तचित्त व एकाग्र होकर सदैव प्रभु में लीन है तो एक प्रकार से वह महासुख संग जीवन जी रहा है। यह स्थिति सात या सौ पाठ हनुमान चालीसा के करने से मिल सकती है।
यदि आप हनुमान जी के जन्मदिवस(कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) पर चौबीस घंटे उपवास रखते हुए एकान्त कमरे में हनुमान चालीसा का निरन्तर पाठ करते हैं तो आप जिस मनोकांक्षा को लेकर यह पाठ करेंगे तो वह हनुमान जी की कृपा से पूरी हो जाएगी। लेकिन ध्यान रखें कि पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व आप हनुमान जी को एक लाल आसन बिछाकर उस पर आदर सहित बुलाकर पाठ सुनने के लिए बुलाना न भूलें और पाठ पूरा होने के बाद आदर सहित उनको विदा करना न भूलें। पाठ की अवधि में घी का दीपक जला सकते हैं और ध्यान रखें कि पाठ के मध्य में दीपक बुझना नहीं चाहिए।
वस्तुतः यह सत्य है कि जो भी श्रद्धा सहित इस चालीसा का पाठ करेगा उसके मनोरथ निश्चित रूप से पूरे होंगे। इसके साक्षी स्वयं शिव हैं-'साखी गौरीसा'।
श्री हनुमान चालीसा का पाठ कैसे करें?
हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखी गई एक काव्यात्मक कृति है जिसमें भगवान श्री राम के महान भक्त श्री हनुमान के कार्यों और गुणों का उल्लेख 40 चौपाइयों में किया गया है। यह अत्यन्त लघु रचना है जिसमें पवन पुत्र श्री हनुमान जी का सुन्दर वर्णन किया गया है। इसमें बजरग बली की भावपूर्ण वन्दना तो है, भगवान श्री राम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। 'चालीसा' शब्द से अभिप्राय 'चालीस' (40) का है क्योंकि इस स्तुति में 40 छन्द हैं (परिचय के 2 दोहों को छोड़कर)। हनुमान चालीसा के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।
श्री हनुमान चालीसा का महत्व
श्री हनुमान चालीसा के लेखन का श्रेय तुलसीदास को दिया जाता है , जो एक कवि-संत थे, जो 16 वीं शताब्दी में रहते थे। उन्होंने भजन के अंतिम छंद में अपने नाम का उल्लेख किया है। श्री हनुमान चालीसा के 39 वें श्लोक में कहा गया है कि जो कोई भी हनुमान की भक्ति के साथ इसका जप करेगा, उस पर हनुमान की कृपा होगी। दुनिया भर के हिंदुओं में, यह एक बहुत लोकप्रिय धारणा है कि चालीसा का जप गंभीर समस्याओं में हनुमान के दैवीय हस्तक्षेप का आह्वान करता है।
श्री हनुमान जी के बारे में
महावीर श्री हनुमान जी भक्ति, सेवा और ब्रह्मचर्य के साकार रूप हैं। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त ओजस्वी एवं तेजस्वी है। शक्ति और पराक्रम के तो वह मूर्तिमन्त रूप ही हैं। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार - "श्री हनुमान बुद्धिमानों में श्रेष्ठ तथा ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं। अपने निष्काम कर्म के अनुरुप ही उनका निःस्वार्थ सेवा का व्रत है। वह श्रीराम के अनन्य भक्त और निःस्वार्थ सेवक हैं।"
चालीस का समूह चालीसा
चालीस चौपाइयों का यह समूह श्री हनुमान चालीसा है जिसमें सम्पूर्ण विधान है ताकिअष्ट सिद्धि एवं नव निधि की प्राप्ति की जा सके। श्री तुलसीदास जी द्वारा यह पूर्ण चालीसा अवधी भाषा में लिखी गयी है जिसके आध्यात्मिक एवं सामान्य अर्थ पर आज प्रकाश डालना आवश्यक है। जितने भी रचनाएँ ऋषियों द्वारा किये गए हैं वे इस प्रकार से किये गए हैं जिनके सामान्य एवं आध्यात्मिक अर्थ दोनों निकल सकें जिससे एक सामान्य व्यक्ति भी समझ सके और एक आध्यात्मिक साधक उसके पीछे छुपे गहन अर्थ को भी समझ सकें।
हनुमत्चरित्
आधुनिक युग में मनुष्य भौतिकवाद के तीव्र ज्वर से ग्रस्त है। लोग स्वार्थ और अहंकार के चलते मानवीय और आध्यत्मिक मूल्यों को भुला बैठे हैं। अतः आवश्यक है कि श्रीहनुमान के दिव्य व्यक्तित्व और कृतित्व का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाय तथा उनके चरित्र और आख्यानों की सही व्याख्या की जाय साथ ही श्री हनुमान के सेवा ब्रह्मचर्य तथा साहस जैसे गुणों का अनुसरण करके राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में नवयुग को बल प्रदान किया जाय।
आधुनिक युग में हनुमतचरित का अनुशीलन और अनुकरण अत्यावश्यक है। हमारे देश को ऐसे चरित्रवान और उदात्त लोगों की आवश्यकता है जो जाति, संप्रदाय तथा क्षेत्र की संकुचित विचारधारा का परित्याग करके समूचे राष्ट्र की प्रगति के लिये प्रयत्नशील हों। हमारे समाज को ऐसे गरिमामय व्यक्तित्व वाले नागरिकों की अपेक्षा है जो स्वार्थ, लोभ, ईर्ष्या और द्वेष को छोडकर निष्ठा और ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करने के लिये तत्पर हो।
हमारे राष्ट्र को ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जो कर्तव्यपरायण, चरित्रवान, अनुशासित, विद्याव्यसनी प्रगतिशील तथा समाजसेवी हों। संघर्ष और टकराव का मार्ग छोड़ कर सामञ्जस्य और सहयोग के रास्ते पर चलें। “निर्वैर सर्वभूतेषु" अर्थात् किसी भी प्राणी के प्रति वैरभाव न रखो देश में ऐसे नागरिक तभी उत्पन्न हो सकते हैं जब महापुरूषों के चरित्र और गुणों का अनुकरण किया जाय। श्री हनुमान के व्यक्तित्व और कृतित्व का व्यापक प्रचार और प्रसार होने से समाज में ऐसे वातावरण की सृष्टि हो सकती है जिससे लोगों के उदात्त चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हो। श्री हनुमान की स्वामिभक्ति, निःस्वार्थ सेवा, ब्रह्मचर्यवृत्ति, ब्रह्मनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता, तथा बुद्धिमत्ता से प्रेरणा लेकर हमारा समाज प्रगति की ओर अग्रसर हो सकता है।
श्री हनुमान में अतुलनीय बल और शौर्य है। वे अत्यंत बुद्धिमान हैं। वह श्रेष्ठ वक्ता, सच्चे सेवक तथा श्री राम के अनन्य, भक्त हैं। इससे भी आगे बढ कर वे ज्ञानी हैं। वह रावण को श्रीराम के निर्गुण, निराकार ब्रह्मस्वरूप के संबध मे समझाते हैं। वह रावण से कहते हैं :-
रावण ! तुम ज्ञान का आश्रय लो। ज्ञान द्वारा संसार की दशा पर विचार करो और मोक्ष प्राप्ति का उपाय सोचो। तुम स्वयं निर्विकार हो। तुम न शरीर हो, न बुद्धि। इनसे प्राप्त दुःख तुम्हारे नहीं हैं। तुम दु:खी हो तो अज्ञान के कारण, क्योंकि तुमने अपने को शरीर, बुद्धि और इंद्रियजन्य समझ लिया है। ये सांसारिक पदार्थ; ये सारे रिश्ते-नाते स्वप्नवत मिथ्या हैं। सत्य को समझो जानो, विचार करो कि मैं चिन्मात्र हूँ, अज हूँ, अक्षर हूँ, आनन्दमय हूँ। इसी बुद्धि को ग्रहण करने पर तुम मोक्ष पाओगे। विष्णु की भक्ति करो। भक्ति बुद्धि का शोधन कर ज्ञान को दृढ़ करती है। ज्ञान प्राप्ति से विशुद्ध तत्व का अनुभव होता है।