श्री हनुमान चालीसा पाठ का एक-एक शब्द अत्यंत प्रभावशाली है अगर पूरे मन से इसे दिन में 7 बार, 11 बार या फिर 108 बार पढ़ा जाए तो जीवन से हर एक परेशानियाँ दूर होने लगती है, हर काम सफल होने लगता है।
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॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
॥दोहा॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
श्री हनुमान चालीसा पाठ के बारे में
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुध्दिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयुथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
आईये, हम हनुमान चालीसा पर चर्चा करें उस पर चिंतन करें। हनुमान चालीसा में हनुमान जी की स्तुति के चालीस दोहे है। विचार आता है कि चालीसा में ४० अंक ही क्यों? ४० अंक के साथ ही अन्य कुछ ऐसे अंक है जिनका आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व है।
प्रथम अंक है ४० जैसे दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा आदि। ४० अंक सामर्थ्य का प्रतीक है। सामर्थ्य अर्थात आंतरिक सामर्थ्य। जिन्हे इंद्रिय-निग्रह, मनोबल प्राप्त करना है उनके लिए ४० का अंक है।
दुसरा अंक है ५२। नाना महाराज तराणेकर परिवार के दत्तभक्त हमेशा "बावन्नी" पढते हैं। बावन्नी शुद्ध वैदिक उपासना के लिए है। गुरुमिलन की इच्छा, मुमुक्षुत्व जागृत होना, गुरुबिना कल्याण असंभव है, यह विचार मन में बार-बार आना, इसके लिए बावन्नी हैं।
तीसरा अंक है ६२। यह अंक तंत्रशास्त्र में प्रसिद्ध है। तांत्रिक उपासना में जारण मारण विद्या से संबंधित या देवी तांत्रिक कवच ६२ बार पढा जाता है। उससे वह शक्ति प्राप्त होती है। किंतु यह उपासना हमारी परंपरा में नही है।
चौथा अंक है १०८ । 'श्री' के साथ अपने सद्गुरू जैसे 'श्री विष्णुदास' का नाम १०८ बार लेने पर गुरू प्राप्ति होती है। गुरु से दीक्षा लेना अलग है। गुरु ने शिष्य के रुप मे हमारा स्वीकार करना ही गुरू प्राप्ति है। इसके पश्चात ही गुरु कृपा होती है। इसका अंक है १००८ । 'श्री' के साथ गुरु का नाम प्रतिदिन १००८ बार लेने से गुरुकृपा होती है।
वैसे देखा जाय तो वैदिक शास्त्र में प्रत्येक अंक का महत्व है। हमने तो अपनी जिज्ञासावश 'हनुमान चालीसा' लिया है। हनुमान चालीसा में इन अंकों का संबंध होने से उन्हें उद्धृत किया गया है। दुसरे दृष्टिकोण से ४० अंक पर विचार किया जाये तो ४० अंक के दो अंकों का जोड ४ होता है । हनुमान चालीसा का प्रतिदिन ४० बार पाठ करने से हमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ती होती है, अर्थात इन चारों पुरुषार्थों का अधिकार यहाँ श्री हनुमान जी को दिया गया है। महाबली हनुमान जब क्रोधित होकर रुद्रावतार धारण कर संपूर्ण शक्तिसह शत्रु पर आक्रमण करते है, उस समय उनके एक उडान में दो कदमो के बीच का अंतर ४० मील होता है। यह मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ। बाल्यावस्था में जब मैं ३० फुट से अधिक ऊंचे पीपल वृक्ष के पास खडा था उस समय मुझे श्री हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए। वे बढते जा रहे थे। उनका मुख दिखाई नही दे रहा था। प्रयास करने पर केवल जंघाएँ ही दिखाई दे रही थी। इसका अर्थ यह है कि वे जब आक्रमण करते हैं तो उनके दो कदमों के बीच का अंतर संभवतः ४० मील का होता होगा। इसलिए नाम दिया गया हैं 'हनुमान चालीसा'।
इसके अलावा ४० के और भी कुछ सांकेतिक अर्थ है। कुछ जोड पर हम विचार करेंगे। प्रथम जोड और उसके दो अंक है। ८+ १२ = २० तथा दुसरा ५ + १५ = २० एवं २० + २० = ४०।
इसके आठ अंक का अर्थ क्या है ? ८ अंक देवी की शक्ति का प्रतीक है। इसलिये हनुमानजी की शक्ति का उल्लेख हनुमान चालीसा में ८ बार आया है । १२ अंक द्वादश आदित्यों का तथा द्वादश ज्योतिर्लिंग का है। १२ के समान ५ अंक भी श्री शिवजी से संबंधित है।
शिवजी कैसे है ? पंचमुखी। इसलिये उत्तर में हमें पंचमुखी हनुमान दिखाई देते है। हनुमान भक्त यदि पंचमुखी रूद्राक्ष धारण करें तो श्री हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। शंकर जी को तीन नेत्र हैं। जिस समय वे क्रोधित होते हैं उस समय उनका तृतीय नेत्र जागृत होता हैं। दुष्टों का विनाश करने की शक्ति उनके तृतीय नेत्र में है। कल्पना कीजिये पांच मुख और १५ नेत्र ८ + १२ = २०, ५ + १५ = २० दोनों का जोड ४० होता हैं । इसका अर्थ हनुमान चालीसा में शक्ति की उपासना है।
१२ आदित्योंकी शक्ति और सुर्य कुलोत्पन्न प्रभु श्री रामचंद्र की शक्ति भी इसमें सम्मिलित है। ४० अंक के ४ का अर्थ हम पहले ही देख चुके है। हनुमान चालीसा का पाठ करने पर हमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ती होती है। ४ में एक और गुढ़ार्थ है। हनुमान श्री राम के दास है किंतु तुलसीदास जी उन्हें शिष्य कहते है और श्री राम को गुरु। पूर्वजन्म के गुरु अर्थात श्री राम का ४ अंक उन्होने विशेषरुप से लिया है। क्योंकि प्रभु राम का जन्म, वाल्मिकी रामायण के अनुसार पुनर्वसु नक्षत्र पर, कर्क राशी में, कर्क लग्न में चंद्र व गुरु की युति में हुआ था। कर्क राशी चौथी है। यह भी ४ अंक का एक सांकेतिक भाग है।
जिस प्रकार देवी की शक्ति से संबंधित ८ अंक के बारे मे बताया गया उसी प्रकार इस अंक का एक और भी रहस्य है। प्रभु श्री राम की जन्मकथा से हम सभी परिचित है। ऋष्यश्रृंग मुनी ने पुत्र का मेष्टी यज्ञ संपन्न करवाया। उस यज्ञ में से लाल वस्त्रधारी, कृष्णवर्णीय यज्ञपुरूष पायस कुंभ (खीर पात्र) लेकर प्रकट हुआ। वह कुंभ पूर्णत: भरा था। इसका अर्थ यह है कि वह सोलह कलाओं से युक्त था। उस पायस का अर्ध भाग महारानी कौसल्या को दिया गया। शेष आधे भाग के दो हिस्से कर उसे कैकेयी और सुमित्रा में बांट दिया गया। परब्रह्म की अर्धशक्ति से अर्थात ८ कलाओं से परिपूर्ण होकर प्रभु श्री राम ने अवतार लिया। शिव जी के पाँच मुख और प्रभु श्रीराम की ८ कलाएं इसका गुणा करने पर ४० अंक आता है। (८x५ = ४०) इस तरह से ४० के अनेक रहस्यमयी अर्थ है। वस्तुतः हनुमान चालीसा महान शक्तिशाली अणुबाँब है। अणुबाँब की शक्ति विध्वंसक होती है। किंतु इसकी शक्ति सात्विक है।
इस प्रकार की संपूर्ण शक्ति उपासक को, प्रभु श्रीराम के उपासक को प्राप्त हो यह चिंता भगवान शंकर को होने लगी। इसलिये शिव जी ने कृपा कर तुलसीदास जी से हनुमान चालीसा लिखवाया। तुलसीदास जी ने उसका वर्णन हनुमान चालीसा में किया है।
जो यह पढे हनुमान चालिसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा।
गौरीसा अर्थात 'गौरीपति'। हनुमान चालीसा के साक्षी भगवान शंकर है। पार्वती जी ने जिज्ञासा वश प्रश्न पूछे, उसके समाधान हेतू शंकर जी ने जो उत्तर दिये उनसे अनेक रक्षा कवच बने। ऋषि बुध कौशिक को शंकर जी ने स्वप्न में रामरक्षा सुनाई। शंकर जी ज्ञान के मूलस्त्रोत है। तुलसीदास जी केवल माध्यम है। श्री शंकरजी ने हनुमान चालीसा रूपी शक्ति कवच तुलसीदास जी को बताया। इस शक्ति का ज्ञान तुलसीदास जी को हुआ।
उन्होंने उत्तर भारत में हनुमान जी का प्रसार किया और उनसे शक्ति के प्रकटीकरण की प्रार्थना की। समर्थ रामदास स्वामी ने भी गांव-गांव हनुमान जी की स्थापना की। हनुमान जी चिरंजीवी है। इसका अर्थ यह है कि उनकी शक्ति सभी युगो में कायम है। फिर वह सत्युग हो, द्वापार युग, त्रेतायुग या कलियुग। यह शक्ति कायम है इसलिए समर्थ रामदास स्वामी ने कहा है "सदा सर्वदा रामदासासी पावे" राम ही सबकुछ है। श्री विष्णु है, दत्त हैं, रामदास का अर्थ है राम की भक्ति करने वाले। जिस जिस युग में सेवा करने वाले होगें उस उस युग में वे उन्हें दर्शन देते रहेगें। गुरुमंदिर में गुलर के वृक्ष की प्रदक्षिणा करते समय एक साधिका को दक्षिणमुखी हनुमान जी के हमेशा दर्शन होते है। अर्थात जहाँ श्री राम की भक्ति होती है वहाँ श्री हनुमान जी अवश्य उपस्थित रहते है। श्री विष्णुदास जी महाराज नें भांबेरी में हनुमान जी की स्थापना करने का आदेश दिया इसमें भी कुछ निहितार्थ होगा।